SUPREME COURT NEWS: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, ने 47 साल पुराने एक रेप केस पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि साल 1979 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने न केवल कानून की आत्मा को ठेस पहुंचाई, बल्कि यह न्यायपालिका के लिए “संस्थागत शर्मिंदगी का क्षण” था। CJI गवई ने ये बातें 30वें सुनंदा भंडारे मेमोरियल लेक्चर के दौरान कहीं। उन्होंने स्वीकार किया कि उस समय अदालत अपने उद्देश्य, नागरिकों के सम्मान और सुरक्षा, को पूरा नहीं कर सकी।
क्या था मथुरा रेप केस?
SUPREME COURT NEWS: यह मामला महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले का है, जहां 1972 में 14 से 16 साल की एक आदिवासी लड़की के साथ पुलिस हिरासत में रेप हुआ था। आरोपी दो पुलिसकर्मी थे। जैसे दिल्ली की निर्भया केस ने देश को झकझोर दिया था, वैसे ही यह केस भी उस दौर में मथुरा रेप केस के नाम से चर्चित हुआ था।
निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर
SUPREME COURT NEWS: सेशन कोर्ट ने पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया, यह कहते हुए कि “लड़की ने सहमति दी थी।” बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए अभियुक्तों को दोषी ठहराया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 1978 (रिपोर्टेड 1979) में हाई कोर्ट का फैसला रद्द कर दोनों अभियुक्तों को फिर से बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि पीड़िता के शरीर पर “चोट के निशान नहीं मिले” और उसने “प्रतिरोध” नहीं किया, इसलिए यह रेप नहीं माना जा सकता।
फैसले पर देशभर में आक्रोश
SUPREME COURT NEWS: इस फैसले के बाद देशभर में विरोध-प्रदर्शन हुए। महिला संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट की सोच को “संवेदनहीन” बताया। लोगों का कहना था कि अदालत ने पीड़िता की उम्र, सामाजिक स्थिति और पुलिस की ताकत के असमान समीकरण को नजरअंदाज किया।
कानून में हुआ बड़ा बदलाव
SUPREME COURT NEWS: जनता के आक्रोश और महिला आंदोलनों के दबाव के बाद 1983 में Criminal Law (Second Amendment) Act लाया गया। इसके तहत कई अहम सुधार किए गए, पुलिस हिरासत में रेप को विशेष अपराध घोषित किया गया। “सहमति” (consent) की परिभाषा बदली गई, अब यह माना गया कि कस्टडी में हुआ यौन संबंध सहमति से नहीं होता। रेप पीड़िता के “पिछले यौन इतिहास” को अदालत में सबूत के रूप में अस्वीकार्य कर दिया गया। अदालत में इन-कैमरा (बंद कमरे में) सुनवाई का प्रावधान जोड़ा गया।
महिला अधिकार आंदोलन का टर्निंग पॉइंट
SUPREME COURT NEWS: मथुरा केस ने भारत में महिला अधिकार आंदोलन को नई दिशा दी। 80 के दशक में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों को लेकर देशभर में अभियान चले, और इसी दबाव में कानून में ऐतिहासिक बदलाव हुए।
CJI गवई ने क्यों कहा ‘शर्म’
SUPREME COURT NEWS: सीजेआई बी.आर. गवई ने कहा, “मेरे विचार में यह फैसला भारत के न्यायिक इतिहास का सबसे परेशान करने वाला क्षण था। अदालत उस व्यक्ति की गरिमा की रक्षा नहीं कर सकी, जिसकी सुरक्षा के लिए ही वह बनी है।” उन्होंने कहा कि इस केस ने भारतीय दंड संहिता में कमियों को उजागर किया और यह दिखाया कि कानून को कैसे और अधिक संवेदनशील बनाना जरूरी है। CJI ने यह भी जोड़ा कि जनता और महिला संगठनों की जागरूकता ने न्यायपालिका को जवाबदेह बनाया, और यही भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।
निष्कर्ष
SUPREME COURT NEWS: 47 साल बाद, देश के सर्वोच्च न्यायाधीश द्वारा इस फैसले पर खेद जताना सिर्फ अतीत की गलती को स्वीकार करना नहीं है यह उस न्यायिक आत्मचिंतन का संकेत है, जो एक संवेदनशील और समानतापूर्ण भारत की नींव रखता है।
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