Azam Khan on CM Yogi: उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक प्रभावशाली भूमिका निभाने वाले समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आजम खान का हालिया बयान सियासी गलियारे में हड़कंप मचाता दिख रहा है। जिसके बाद सवाल उठता है कि एक समय खुद को सत्ता के केंद्र में मानने वाले आजम खान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ताकत और प्रशासनिक पकड़ की सार्वजनिक रूप से तारीफ कैसे कर दी ? राजनीतिक विश्लेषक भी अब इस सवाल का जवाब ढूंढने लगे हैं कि आखिर आजम खान के साथ जेल में ऐसा क्या हो गया जो उन्होंने रिहा होते ही योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के इतिहास का सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री बता दिया। याद दिला दे कि ये वही आजम खान हैं, जिन्होंने एक समय कहा था, सरकार लखनऊ से नहीं रामपुर से चलती है।
आजम खान के बदले तेवर
Azam Khan on CM Yogi: रामपुर से नौ बार विधायक और लंबे समय तक सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान को कभी पार्टी का रणनीतिकार और पावर सेंटर माना जाता था। वे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते थे, लेकिन बीते वर्षों में उनका सियासी कद न सिर्फ घटा, बल्कि कानूनी मामलों और जेल यात्रा ने उनकी राजनीतिक भूमिका को सीमित कर दिया। योगी सरकार के दौरान उन पर कई मुकदमे दर्ज हुए। लंबे समय तक जेल में रहने के बाद जब वे बाहर आए तो उनके तेवर बदले हुए नजर आए।
दरअसल, जेल से रिहा होने के बाद आजम खान की बयानबाज़ी में बड़ा परिवर्तन देखा गया। उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर सियासी टकराव की बजाय संयमित भाषा का इस्तेमाल शुरू किया। हाल ही में उन्होंने कहा कि मैं अब झगड़ों की राजनीति नहीं करना चाहता। यही नहीं, उन्होंने समाजवादी पार्टी से भी दूरी बनाकर रखी और सक्रिय राजनीति में अपेक्षाकृत शांत भूमिका अपनाई।

अखिलेश से हुई मुलाकात
Azam Khan on CM Yogi: गौरतलब है कि हाल ही में आजम खान और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मुलाकात को ‘सुलह की पहल’ माना गया, लेकिन जानकारों का मानना है कि पार्टी में उनकी भूमिका अब सीमित हो चुकी है। दूसरी ओर, उन्होंने मायावती के लिए भी सकारात्मक रुख दिखाया और कहा कि अगर उन्हें मुझसे कोई शिकायत है तो मैं माफी चाहता हूँ। आगे उन्होंने ये भी कहा कि कांशीराम जी से मेरा पुराना संबंध था। मैं उनके बड़ों का भी सम्मान करता हूँ।
योगी का डर या रणनीति?
Azam Khan on CM Yogi: राजनीतिक विश्लेषकों का माना है कि आजम खान का रुख मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए बदला हुआ नजर आता है। जिन लोगों के साथ उनका राजनीतिक टकराव रहा, आज वही उनके लिए सम्मान के पात्र बनते जा रहे हैं। जिसके बाद अब राजनीतिक विशेषज्ञ इन सवालों का जवाब तलाशने में लगे है कि क्या उत्तर प्रदेश में विपक्ष की राजनीति नए समीकरणों की ओर बढ़ रही है? या यह सत्तारूढ़ भाजपा से दूरी कम करने की एक कोशिश है या राजनीतिक अस्तित्व बचाने की कोई चाल?
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