Chandni Chowk History: दिल्ली का चांदनी चौक जिसे दिल्ली का दिल कहना गलत नहीं होगा। किसी के घर में कोई फंक्शन हो या कोई दिल्ली किसी काम से आया हो सबका एक बार चांदनी चौक जाने का मन जरूर करता है। लेकिन क्या कभी सोचा है पूरे देश के लिए आकर्षण के केंद्र इस चांदनी चौक को किसने डिजाइन किया? यह बहने वाली नहर आखिर कहां गई और इसका नाम चांदनी चौक क्यों रखा गया?

दिल्ली के Chandni Chowk की शुरुआत कब और कैसे हुई?
Chandni Chowk History: दिल्ली के पहले देश की राजधानी आगरा थी, बाद में शाहजहां द्वारा इससे बदल कर दिल्ली को राजधानी बनाया गया। शाहजहां की बेटी जहांआरा को खरीदारी करना बेहद पसंद था और अपनी बेटी के इस शौक को देखते हुए साल 1648 में शाहजहां ने इस बाजार को बनाने का फैसला किया।

शाहजहां ने दिल्ली आने के बाद अपनी बेटी के लिए लाल किले के सामने ही एक बड़ा बाजार बनवाने का फैसला किया। इस बारे में जब जहांआरा को मालूम हुआ तो उसने खुद चांदनी चौक के इस बाजार को डिजाइन करने का फैसला लिया। जिसके बाद 1650 में चांदनी चौक तक बाजार तैयार हुआ। इतिहासकारों की अनुसार पहले तो यह बाजार 40 गज चौड़ा, 1520 गज लंबा था अथवा कुल 1560 दुकानें यहां मौजूद थीं।

ग्रेज़ों के समय में कैसे बदला Chandni Chowk History का रूप?
Chandni Chowk History: जब यह बाजार बनवाया गया तब इसका आकार आधे चांद की तरह था। वही इस बाजार के बीचो-बीच एक नहर बहती थी, साथ ही यहां एक तालाब भी मौजूद था। जब भी चांदनी रात में चांद की रोशनी नहर और तालाब के पानी में पढ़ती थी, तो पूरा बाजार जगमगा उठता था। इसी वजह से इस बाजार को चांदनी चौक के नाम से जाना जाता है। चांदनी चौक बाजार का कई बार पुनर्निर्माण भी किया जा चुका है। इसी के चलते अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान यह की नहर और तलाब को ढक कर उस पर कई दुकानों का निर्माण करवा दिया गया।
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