Home » उत्तर प्रदेश » Karwa Chauth 2025: मथुरा के सुरीर गांव में महिलाएं नहीं रखती करवाचौथ का व्रत, सती के श्राप ने छीना हक, महिलाएं बोली- ‘अब हिम्मत नहीं जुटा पाते’

Karwa Chauth 2025: मथुरा के सुरीर गांव में महिलाएं नहीं रखती करवाचौथ का व्रत, सती के श्राप ने छीना हक, महिलाएं बोली- ‘अब हिम्मत नहीं जुटा पाते’

Mathura News

Karwa Chauth 2025: जहां एक ओर पूरे देश में कल यानी शुक्रवार को महिलाएं करवा चौथ का पर्व मनाकर अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना करेंगी, वहीं उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के सुरीर कस्बे में यह पर्व नहीं मनाया जाएगा। सुरीर की महिलाओं द्वारा करवा चौथ और अहोई अष्टमी जैसे पर्वों का न मनाया जाना एक सदी पुरानी परंपरा से जुड़ा है। स्थानीय लोगों की मान्यता के मुताबिक, करीब 200 साल पहले यहां एक महिला ने सती होकर इस स्थान को श्राप दिया था, जिसके बाद से ही यहां की महिलाओं ने इन पर्वों को न मनाने की परंपरा बना ली। तभी से ही इस क्षेत्र की महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत नहीं रखतीं है। नई बहुओं के लिए यह परंपरा अक्सर हैरान कर देने वाली होती है, लेकिन समय के साथ वे भी इस परंपरा का पालन करने लगती है।

पहला करवा चौथ नहीं मना रही रीता सिंह

Karwa Chauth 2025: विवाहिता रीता सिंह जो हाल ही में विवाह के बाद सुरीर आईं ने बताया कि ये उनका पहला करवा चौथ था, मगर ससुराल की परंपरा के चलते उन्हें व्रत रखने की इच्छा छोड़नी पड़ी। जबकि कस्बा निवासी सपना का कहना है कि वह पीछे आठ साल से करवा चौथ का व्रत नहीं रख रही है। शादी के बाद का पहला करवा चौथ वह मनाना चाहती थी लेकिन परंपरा के अनुसार, उन्हें अपना मन मारना पड़ा। ऐसा न कर पाने का दर्द उन्हें आज तक है। जबकि अन्य महिलाओं का कहना है कि वे व्रत की बजाय अपने परिवार की सलामती और ईश्वर पर विश्वास को प्राथमिकता देती हैं। अब समय बदल गया है। जिसके चलते उनका मानना है कि सती माता का श्राप अब आशीर्वाद में बदल चुका है, लेकिन फिर भी कोई इस परंपरा को तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।

स्थानीय महिलाएं
                                                                      स्थानीय महिलाएं

स्थानीय निवासी बताते हैं ये कारण…

Karwa Chauth 2025: स्थानीय निवासी जनश्रुति का कहना है कि करीब दो शताब्दी पहले नौहझील के रामनगला गांव का एक ब्राह्मण युवक अपनी पत्नी को गौना कराकर सुरीर के रास्ते भैंसा-बुग्गी से ला रहा था। इस बीच कुछ ठाकुरों से विवाद हुआ, जिसमें युवक की हत्या कर दी गई। पति की मृत्यु देख उसकी पत्नी ने वहीं सती हो जाने का निर्णय लिया और कथित तौर पर इलाके को श्राप दे दिया। जिसके बाद से ही   कई नवविवाहिताएं असमय विधवा हो गईं और युवाओं की अकाल मृत्यु के कई मामले सामने आने लगे थे। वहीं अब इस मान्यता के चलते सुरीर में करवा चौथ और अहोई अष्टमी का पर्व नहीं मनाया जाता है।

 

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