MOHAN BHAGWAT: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने जयपुर में एक कार्यक्रम के दौरान संगठन की यात्रा, कार्यशैली और फंडिंग मॉडल पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि संघ आज जिस ऊंचाई पर है, उसके पीछे शुरुआती संघर्ष, समर्पण और निस्वार्थ भाव से की गई सेवा की लंबी कहानी है।
संघ की शुरुआत: हंसी-मजाक से संघर्ष तक
मोहन भागवत ने कहा कि संघ की शुरुआत बेहद साधारण और उपेक्षित हालात में हुई थी। बहुत से लोग आरएसएस और डॉक्टर हेडगेवार के विचारों का मज़ाक उड़ाते थे। उन्होंने कहा, लोग कहते थे कि नाक साफ करने लायक नहीं और ऐसे बच्चों के साथ राष्ट्र निर्माण का दावा करते हैं। संघ के विचारों और कार्यप्रणाली को लेकर लोगों में अविश्वास और उपहास की भावना थी, पर संगठन ने कभी हार नहीं मानी।
MOHAN BHAGWAT: संघ प्रचारकों का त्याग: भूखे-प्यासे घूमते थे घर-घर
संघ प्रमुख ने शुरुआती दिनों के एक प्रचारक का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह सीमित साधनों में काम होता था। डॉक्टर हेडगेवार ने उन्हें भागलपुर भेजा—जेब में सिर्फ एक टिकट और लगभग सवा रुपया।
यह प्रचारक पटना-भागलपुर की लोकल ट्रेन में ही रात बिताता था और स्टेशन की सुविधाओं का उपयोग करता था। दिन में वे पूरे नगर में घूमकर संघ का काम करते और भूख लगने पर कुछ चने खरीदकर पेट भरते थे। भागवत ने कहा कि संघ का विस्तार ऐसे ही त्यागमय जीवन जीने वाले कार्यकर्ताओं की वजह से संभव हुआ।

निस्वार्थ सेवा: तीन पीढ़ियों तक चला भोजन का संकल्प
मोहन भागवत ने एक स्वयंसेवक की कहानी साझा करते हुए बताया कि कैसे समाज ने भी इन कार्यकर्ताओं के प्रति सम्मान और सेवा भाव दिखाया। एक ब्राह्मण जब स्वयंसेवक के घर भोजन करने आया, तो उसकी मां ने उसका समर्पण देखकर उसे सुबह-शाम भोजन कराने का संकल्प ले लिया।
भागवत ने कहा, मां ने तय किया कि यदि वह भोजन करने नहीं आएगा, तो वह खुद भी खाना नहीं खाएंगी। यह परंपरा तीन पीढ़ियों तक जारी रही।
MOHAN BHAGWAT: फंडिंग मॉडल: गुरु दक्षिणा से चलता है संघ
संघ प्रमुख ने स्पष्ट किया कि आरएसएस की फंडिंग पूरी तरह स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं द्वारा की जाती है। उन्होंने कहा, यह गुरु दक्षिणा है। हमारे सदस्य अपनी कमाई का हिस्सा ही नहीं, बल्कि निजी जीवन में बचत करके अतिरिक्त धन भी संघ में लगाते हैं।
उन्होंने बताया कि संघ न तो बाहरी फंडिंग पर निर्भर है और न ही सरकार से किसी प्रकार की सहायता लेता है। यह संगठन पूरी तरह अपने सदस्यों के त्याग और योगदान पर आधारित है।
यह कार्यक्रम संघ की विचारधारा, समर्पण और आर्थिक मॉडल को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर रहा, जिसमें भागवत ने आरएसएस के 100 वर्षों के सफर की कई अनसुनी कहानियां साझा कीं।







