ख़बर का असर

Home » धर्म » Devavrat Mahesh Rekhe: कौन हैं 19 साल के देवव्रत महेश रेखे, जिन्होंने 200 साल बाद शुक्ल यजुर्वेद का चमत्कार किया, पीएम मोदी ने भी की तारीफ

Devavrat Mahesh Rekhe: कौन हैं 19 साल के देवव्रत महेश रेखे, जिन्होंने 200 साल बाद शुक्ल यजुर्वेद का चमत्कार किया, पीएम मोदी ने भी की तारीफ

Kaun Hain Vedamurti Devavrat Mahesh Rekhe

Devavrat Mahesh Rekhe: महाराष्ट्र के छोटे से गांव के 19 वर्षीय वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे ने ऐसा अद्भुत कारनामा कर दिखाया है, जिसे पिछले 200 सालों में कोई नहीं कर पाया था। उनके इस असाधारण कार्य के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर उन्हें खुले दिल से सराहा। पीएम मोदी ने लिखा कि देवव्रत का यह योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनेगा और भारतीय संस्कृति से प्रेम करने वाले हर व्यक्ति को इस पर गर्व है। काशी के सांसद होने के नाते पीएम मोदी ने इसे काशी की धरती का सौभाग्य बताया और देवव्रत, उनके परिवार, गुरुओं और सहयोगी विद्वानों को प्रणाम किया।

देवव्रत महेश रेखे कौन हैं?

देवव्रत महेश रेखे महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले के एक साधारण ब्राह्मण परिवार से आते हैं। उनके पिता महेश चंद्रकांत रेखे स्वयं बड़े विद्वान हैं और देवव्रत के पहले गुरु भी। मात्र 5 साल की उम्र में देवव्रत ने वेद मंत्र बोलना शुरू कर दिया था। आज 19 साल की उम्र में उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनी शाखा पूरी कंठस्थ कर ली है और उन्हें ‘वेदमूर्ति’ की उपाधि मिली है। वेदमूर्ति वे विद्वान या संन्यासी होते हैं जिन्होंने वेदों का गहन अध्ययन किया हो और उन्हें कंठस्थ कर लिया हो। इस उपाधि का उद्देश्य वेदों और वैदिक परंपराओं के संरक्षण व प्रचार में योगदान देने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करना है।

Devavrat Mahesh Rekhe: 50 दिनों का कठिन दंडक्रम पारायण

2 अक्टूबर से 30 नवंबर तक काशी के रामघाट स्थित वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय में देवव्रत ने लगातार 50 दिन, सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक शुक्ल यजुर्वेद के लगभग 2000 मंत्रों का दंडक्रम पारायण किया। दंडक्रम का मतलब है कि हर मंत्र को 11-11 अलग-अलग क्रमों में दोहराना, जो इतना कठिन है कि इसे आखिरी बार 200 साल पहले नासिक के वेदमूर्ति नारायण शास्त्री देव ने किया था। इस तरह देवव्रत विश्व में दूसरी बार और भारत में 200 साल बाद इस अद्भुत कार्य को सफल बनाने वाले वेदमूर्ति बने।

इस आयोजन को शृंगेरी पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ महाराज के आशीर्वाद से संपन्न किया गया। पूर्णाहुति के दिन काशी में भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें 500 से अधिक बटुक और दक्षिण भारतीय वाद्य यंत्र शामिल होंगे। देवव्रत को शंकराचार्य जी की ओर से सोने का कंगन और 1,01,116 रुपये नकद प्रदान किए जाएंगे। इस दौरान उनके पिता-गुरु महेश रेखे, श्रोता देवेंद्र गढ़ीकर और संयोजक नीलेश केदार जोशी का भी सम्मान किया जाएगा।

गुरु-शिष्य परंपरा का जीता-जागता उदाहरण

मात्र 19 साल की उम्र में जिस चुनौती को पूरा करना बड़े विद्वानों के लिए मुश्किल था, देवव्रत ने उसे सहजता और निष्ठा के साथ संपन्न कर दिखाया। वे गुरु-शिष्य परंपरा के जीवंत प्रतीक बन गए हैं। उनकी लगन और स्मृति देखकर काशी के विद्वान भी हैरान हैं, और उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन जाएगी।

ये भी पढ़े… Maharashtra News: प्यार की कीमत बनी जान! आंचल के प्रेमी की हत्या कर पिता-भाई ने सपने किए चकनाचूर

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Share this post:

खबरें और भी हैं...

Live Video

लाइव क्रिकट स्कोर

khabar india YouTube posterKhabar India YouTube

राशिफल