Girl Child Murder Case: आज के समय में, जब सरकार बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ योजनाओं के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और कई लोग लड़का-लड़की के समान अधिकार की बात भी करते हैं, वहीं आज भी समाज में कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं जो एक लड़की के जन्म को बोझ समझते हैं। कहते हैं, मां जब बच्चे को जन्म देती है तो उनके अंदर ममता का भी जन्म होता है। लेकिन क्या हो जब समाज की चुनौतियाँ और दबाव इस ममता को भीतर उतरने ही न दें। ऐसा ही एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जहां गाजियाबाद की एक मां ने अपनी ही नवजात बेटी की जान ले ली। इस घटना में सिर्फ एक नवजात की जान नहीं गई, बल्कि उस समाज का सच भी सामने आया, जो आज भी बेटियों को बोझ से अधिक कुछ नहीं समझता।

45 मिनट की नन्ही जिंदगी पर क्यों पड़ा मौत का साया?
Girl Child Murder Case: गाजियाबाद की ठंडी सुबह में एक ऐसी घटना सामने आई, जिसने हर दिल को झकझोर दिया। एक नवजात बच्ची, जिसे दुनिया में आए अभी 45 मिनट भी नहीं हुए थे, अपनी मां द्वारा छत से नीचे फेंक दी गई। बता दें, जिस घर में बच्ची का जन्म हुआ था, उसी घर की छत से नवजात को फेंका गया, जिसके बाद बच्ची 20 फीट दूर पड़ोसी की छत पर गिर गई।
पोस्टमॉर्टम में डॉक्टर ने जानकारी दी कि, “उसके सिर की हड्डी दो हिस्सों में थी। हाथ-पैर में कई फ्रैक्चर थे। उसे जन्म के एक घंटे के भीतर मारा गया।”
Girl Child: पोस्टमॉर्टम ने खोला सच, मां के बयान पर बढ़ी शंका
Girl Child Murder Case: रिपोर्ट के सामने आने के बाद हर कोई हैरान था। इसके बाद पुलिस ने मां, झरना को हिरासत में लिया। दरअसल, झरना के बयान ने पुलिस को उस पर शक करने पर मजबूर किया। उसने कहा कि बच्ची का जब जन्म हुआ, उसकी सांस नहीं चल रही थी, वह मृत पैदा हुई थी। “मुझे कुछ समझ नहीं आया, तो मैंने उसे बगल के खाली प्लॉट में फेंकना चाहा, लेकिन वह पड़ोसी की छत पर जाकर गिरी।”
भ्रूण जांच, दवाइयां और अबॉर्शन की असफल कोशिश
Girl Child Murder Case: पुलिस द्वारा दो घंटे की पूछताछ ने झरना को तोड़ दिया और उसने जुर्म कबूल कर लिया। पूछताछ में सामने आया कि वह बेटी नहीं चाहती थी। शादी को डेढ़ साल हो गए थे और झरना हमेशा बेटे को जन्म देना चाहती थी। इसी वजह से प्रेग्नेंसी के पांचवें महीने में उसने दरभंगा के एक प्राइवेट नर्सिंग होम में भ्रूण जांच करवाई। गर्भ में लड़की होने का पता चलते ही उसने अबॉर्शन की कोशिश की, लेकिन मेडिकल कंडीशन देखते हुए डॉक्टरों ने अबॉर्शन करने से मना कर दिया और कुछ दवाइयों की सलाह दी। दवाइयों की वजह से झरना की तबियत बिगड़ने लगी, जिसके बाद उसे दवाइयां बंद करनी पड़ीं।

इस बारे में झरना के पति को भी जानकारी नहीं थी। जांच के बाद भी गर्भ में लड़की होने की बात उसने अपने पति को नहीं बताई। बाद में उसने पति से कहा कि वह अपनी बहन के पास रहना चाहती है और 14 नवंबर को झरना दरभंगा से गाजियाबाद आ गई। झरना की बहन, सविता, सिहानीगेट इलाके के नेहरू नगर के राकेश मार्ग पर रहती हैं। वहीं बच्ची का जन्म भी हुआ।
पुलिस जांच में खुला समाज का कड़वा सच
Girl Child Murder Case: 5 दिसंबर की सुबह बच्ची घर में ही पैदा हुई थी। झरना ने पुलिस को बताया, “मैं घबरा गई थी… पति को कैसे बताती? मैं इस बच्ची को नहीं रखना चाहती थी।” घबराहट और समाज के डर में उसने ऐसा कदम उठाया, जिसकी कीमत एक मासूम की जान ने चुकाई। बच्ची पड़ोसी की छत पर एक पॉलिथीन में लिपटी हुई मिली।
ACP उपासना पांडे के शब्द दिल में उतर जाते हैं, “बच्ची जिंदा थी और उसे फेंका गया। उसकी चोटें स्पष्ट हैं।” पुलिस अब DNA टेस्ट भी करवाएगी। दरभंगा (बिहार) में महिला के पति से संपर्क करने की कोशिश की गई है, लेकिन बात नहीं हो सकी। बता दें, यह कहानी सिर्फ झरना की नहीं है। यह उस समाज की कहानी है, जहां बेटी होना आज भी बोझ माना जाता है, और जहां एक मां समाज के डर के कारण अपनी ही संतान के खिलाफ खड़ी हो जाती है।
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