Swami Dipankar: स्वामी दीपांकर महाराज की ‘भिक्षा यात्रा’ ने अब 1000 दिनों से भी अधिक का ऐतिहासिक सफर पूरा कर लिया है। 23 नवंबर 2022 को उत्तर प्रदेश के देवबंद से शुरू हुई यह यात्रा आज एक जनआंदोलन में बदल चुकी है। शुरुआत में जहाँ सिर्फ 19 लोग उनके साथ थे, वहीं आज यह संख्या बढ़कर 50 लाख से अधिक हो चुकी है। स्वामी दीपांकर का इस पूरी यात्रा के दौरान एक ही संदेश बार-बार गूँजता रहा “हमें कोई दान या उपहार नहीं चाहिए, अगर कोई भिक्षा देनी है तो सिर्फ एक ‘मैं हिंदू हूँ’ होने की भिक्षा दें।” उनका उद्देश्य जाति, उपजाति, पंथ और मत के नाम पर बँट चुके हिंदू समाज को फिर एक सूत्र में पिरोना है, और इस संदेश ने लाखों लोगों के दिलों को छू लिया है।
जाति छोड़ एक हिंदू पहचान अपनाने का प्रण ले रहे लोग
1000 दिनों में ‘भिक्षा यात्रा’ ने 20,000 किलोमीटर से अधिक का विशाल पदयात्रा मार्ग तय किया है। इस दौरान यात्रा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, तेलंगाना, बिहार से होती हुई अब मध्य प्रदेश के जबलपुर तक पहुँच चुकी है। यह यात्रा न केवल राज्यों को पार कर रही है, बल्कि लाखों लोगों को जोड़ रही है, और इसी कारण अब तक 1 करोड़ से अधिक लोगों ने ‘एक हिंदू होने’ का संकल्प लिया है। भिक्षा यात्रा जहाँ भी पहुँचती है, वहाँ भीड़ उमड़ पड़ती है और लोग जाति छोड़कर एक हिंदू पहचान अपनाने का प्रण लेते हैं।
Swami Dipankar: यात्रा का मकसद- हिंदू समाज की एकता
1000 दिन पूरे होने के अवसर पर यात्रा से जुड़े भक्तों और समर्थकों ने एक भव्य आयोजन भी किया, जिसे ‘हिंदू एकता संकल्प सभा’ के रूप में मनाया गया। माना जा रहा है कि इस समारोह में समाज के विभिन्न वर्गों के लोग जुड़े और एक स्वर में संकल्प लिया कि अब हिंदू समाज जातिगत भेदभाव में नहीं बँटेगा। कार्यक्रम में स्वामी दीपांकर ने फिर दोहराया कि उनकी यात्रा का मकसद सिर्फ एक है हिंदू समाज की एकता और सनातन पहचान की पुनर्स्थापना।
2026 में भिक्षा यात्रा का अगला बड़ा
भविष्य की बात करें तो यह आंदोलन यहीं थमने वाला नहीं। स्वामी दीपांकर महाराज ने संकेत दिया है कि साल 2026 में भिक्षा यात्रा का अगला बड़ा और विशाल अध्याय फिर से उत्तर प्रदेश में शुरू किया जाएगा। इस आयोजन को हिंदू समाज की एकता को नई दिशा देने वाला सबसे बड़ा कार्यक्रम माना जा रहा है। यात्रा के प्रभाव को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में यह आंदोलन और भी व्यापक स्तर पर देशभर में फैल सकता है।
कुल मिलाकर, स्वामी दीपांकर की ‘भिक्षा यात्रा’ अब सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि हिंदू चेतना और सामाजिक परिवर्तन का राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन चुकी है। 1000 दिनों का यह सफर समाज में एक नई सोच पैदा कर चुका है कि जाति नहीं, धर्म हमारी पहचान है; और पहचान एक ही हिंदू। वहीं देखा जाए तो जहां एक तरफ आज के समय में जब समाज हर तरफ से विभाजनों, राजनीति, मतभेदों और भ्रमों से गुजर रहा है, तब ‘भिक्षा यात्रा’ हिंदू समाज के लिए एक नई रोशनी बनकर उभरी है। यह यात्रा बता रही है कि समाज को ताकत तब मिलती है जब वह एक होता है, चाहे विचार अलग हों, प्रदेश अलग हों, भाषाएँ अलग हों, लेकिन दिल एक हों।
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