
पेरिस पैरालंपिक: भारत की अवनि लेखरा ने इतिहास रचते हुए महिलाओं की स्टैंडिंग 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा एसएच-1 में गोल्ड मेडल जीता। यह पेरिस पैरालंपिक में भारत का पहला पदक है, और वह भी स्वर्ण के रूप में। अवनि की यह जीत आसान नहीं थी; इसके पीछे उनका वर्षों का संघर्ष और समर्पण है।
कठिन शुरुआत और अपार हिम्मत
पेरिस पैरालंपिक: महज 12 साल की उम्र में अवनि की जिंदगी बदल गई जब एक दुर्घटना में उन्हें पैरालिसिस हो गया। व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा और वह मानसिक रूप से टूट गई थीं। उनके माता-पिता ने सुझाव दिया कि वह किसी खेल से जुड़ें। इसी दौरान उन्होंने शूटिंग में कदम रखा।
शूटिंग में कदम और जुनून
पेरिस पैरालंपिक: दुर्घटना के तीन साल बाद अवनि ने शूटिंग शुरू की और महज पांच साल में उन्होंने अपनी मेहनत से गोल्डन गर्ल का खिताब हासिल कर लिया। उनके पिता प्रवीण बताते हैं कि शुरुआत में अवनि गन तक सही से नहीं उठा पाती थीं, लेकिन आज वही भारत का नाम रोशन कर रही हैं।
कोरोना काल की चुनौतियाँ
पेरिस पैरालंपिक: कोरोना लॉकडाउन में प्रैक्टिस में बाधा आई, लेकिन उनके पिता ने घर पर टारगेट सेट कर उनकी तैयारी जारी रखी। अवनि ने नियमित जिम और योगा के साथ फिटनेस और खान-पान का ध्यान रखा, ताकि गोल्ड पर निशाना सही रहे।
पैरालंपिक और विश्व स्तर पर सफलता
पेरिस पैरालंपिक: टोक्यो पैरालंपिक में अवनि ने पहले ही स्वर्ण और कांस्य जीतकर इतिहास रचा था। पेरिस में फिर से स्वर्ण जीतकर उन्होंने भारत की सबसे सफल महिला शूटर बनने का रिकॉर्ड बनाया। इसके अलावा, विश्व कप और एशियाई पैरा गेम्स में भी अवनि ने कई पदक जीते हैं।
सम्मान और पुरस्कार
पेरिस पैरालंपिक: अवनि को 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें खेल रत्न, यंग इंडियन ऑफ द ईयर और बेस्ट फीमेल डेब्यू अवॉर्ड जैसे कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
अवनि लेखरा की कहानी यह साबित करती है कि कठिनाइयाँ चाहे जितनी भी बड़ी हों, अगर जज्बा और मेहनत मजबूत हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।
Written by: SAUBHAGYA SRIVASTAV