Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे प्रदेश में राजनीतिक हलचल तेज होती दिख रही है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही पूरे दमखम से मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके हैं। वहीं राज्य के मतदाता इस बार किन मुद्दों पर वोट करेंगे, यह भी राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक बड़ा सवाल बन गया है। लेकिन इस बार बिहार के खगड़िया जिले की अलौली (सुरक्षित) विधानसभा सीट राज्य की सियासत में चर्चा का केंद्र बनी हुई है। जो चुनावी मौसम में राज्य की दिशा तय करने में अहम मानी जाती है।
शुरुआती दौर में कांग्रेस का रहा कब्जा
Bihar Election 2025: गौरतलब है कि वर्ष 1962 में अस्तित्व में आई यह सीट न केवल सामाजिक और जातीय समीकरणों के कारण चर्चा में रहती है, बल्कि यहां का परिणाम अक्सर पूरे खगड़िया जिले और सीमावर्ती इलाकों में राजनीतिक हवा का रुख भी तय करता है। वैसे तो अलौली सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का कब्जा रहा है। पार्टी ने यहां 1962, 1967, 1972 और 1980 में सफलता पाई थी। लेकिन जैसे-जैसे समाजवादी विचारधारा का प्रभाव बढ़ा, इस सीट पर जनता दल, राजद, जेडीयू और अन्य समाजवादी दलों ने अपनी पैठ मजबूत की। अब तक के चुनावी इतिहास में समाजवादी खेमे की पार्टियां 11 बार इस सीट पर विजय हासिल कर चुकी हैं। इसमें जनता दल, राजद, जेडीयू और लोजपा को दो-दो बार जीत मिली है, जबकि संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी और लोकदल ने एक-एक बार सफलता पाई है।
कांटे की टक्कर में राजद की जीत
Bihar Election 2025: वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां बेहद करीबी मुकाबला देखने को मिला, जहां राजद के रामवृक्ष सदा ने जेडीयू की साधना देवी को 2,773 मतों के अंतर से हराया। यह जीत उस समय और भी खास मानी गई जब चिराग पासवान की पार्टी एनडीए से अलग हो गई, जिससे वोटों का विभाजन हुआ और राजद को सीधा लाभ मिला। इससे पहले 2015 में महागठबंधन (राजद-जेडीयू-कांग्रेस) की एकता के कारण लोजपा के दिग्गज नेता पशुपति पारस को शिकस्त झेलनी पड़ी थी।
एक नजर अलौली के जातीय समीकरण पर
Bihar Election 2025: मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में इस सीट पर कुल 2,52,891 मतदाता थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 2,67,640 हो गई हैं। इनमें अनुसूचित जाति के मतदाताओं का योगदान 25.39 प्रतिशत है। सबसे बड़ी जातीय आबादी सदा (मुसहर) समुदाय की है, जिनकी संख्या लगभग 65 हजार है और यह समुदाय चुनावी नतीजों में निर्णायक साबित होता है। यादव मतदाता लगभग 45,000 हैं, जबकि मुस्लिम वोटरों की संख्या 15,000 यानी करीब 7.6 प्रतिशत है। इसके अलावा भी कई ऐसी जातिया है जो ये तय करने में अहम भूमिका निभाती है कि इस बार बिहार में किसकी सरकार बनने वाली है। इसमें कोयरी, कुर्मी समाज, पासवान समुदाय, मल्लाह और राम समुदाय शामिल है।
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