दिल्ली-एनसीआर में स्कूलों की मनमानी फीस और कोर्स चार्जेज़ की लूट ने आम जनता की कमर तोड़ दी है। सरकारें सत्ता के नशे में सो रही हैं, शिक्षा मंत्री आंखें बंद करके बैठे हैं और स्कूल मालिक दिनदहाड़े जनता की जेब काट रहे हैं। सवाल .ह कि क्या जनता ने नेताओं को इसलिए वोट दिया था कि वो अपनी ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ लें और जनता को इन स्कूलों के रहमोकरम पर छोड़ दें? आज एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना किसी युद्ध से कम नहीं है। अगर माता-पिता स्कूल की फीस भरते हैं, तो घर का राशन कम पड़ जाता है। अगर किताबों और यूनिफॉर्म के पैसे देते हैं, तो बच्चों का इलाज तक मुश्किल हो जाता है। एक आम आदमी की हालत यह हो गई है कि वह या तो बच्चों की शिक्षा को बचाए या अपने परिवार की रोज़ी-रोटी को।
Delhi News: शिक्षा मंत्री की चुप्पी: मिलीभगत या लापरवाही?
दिल्ली हो या एनसीआर, हर जगह शिक्षा के नाम पर लूट हो रही है। स्कूलों की मोटी-मोटी फीस आम आदमी के बजट से बाहर हो चुकी है। हजारों-लाखों रुपये सिर्फ एडमिशन के नाम पर लिए जा रहे हैं। किताबें भी स्कूलों के प्राइवेट वेंडर्स से ही जबरदस्ती खरीदवाई जाती हैं। हर साल नया यूनिफॉर्म, नया बैग, नया खर्चा! आखिर ये धंधा कब तक चलेगा? लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा मंत्री और बड़े नेता इस मुद्दे पर खामोश क्यों हैं? क्या उनकी आँखें बंद हैं या उन्होंने कानों में तेल डाल रखा है? क्या उन्हें नहीं दिखता कि उन्हीं की सरकार के दौर में प्राईवेट स्कूलों द्वारा जनता का खून चूसा जा रहा है? आखिर इन स्कूलों के खिलाफ ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की जाती?
नोएडा के अमर उजाला में प्रकाशित खबर के मुताबिक किताबों व स्टेशनरी के बढ़े दामों ने अभिवावकों का बजट बिगाड़ दिया है। इतना ही नहीं अभिवावकों ने स्कूलों की मनमानी को लेकर अपना रोष भी खबर के माध्यम से जताया है। अभिवावकों का कहना है कि स्कूल संचालक शिक्षा के नाम पर मनमानी कर रहे हैं। इतना ही नहीं अभिवावकों पर अपने ही प्रकाशन की किताबें मनमाने तरीके से बेच रहे हैं। अब बात करें तो देश की 80% आबादी इस समस्या से जूझ रही है। लेकिन 20% अमीरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनके लिए लाखों की फीस भरना आम बात है। जिनके पास पहले से पैसा है, उनके बच्चों के लिए बड़े-बड़े इंटरनेशनल स्कूल खुले हैं, लेकिन मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों के लिए सरकारी स्कूलों की बदहाली और प्राइवेट स्कूलों की लूट ही विकल्प बचे हैं।
Delhi News: नाराज अभिवावकों ने की डीएम से शिकायत
हालांकि जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ धर्मवीर सिंह ने कहा “स्कूल संचालक फिक्स जगह से किताबें लेने के लिए नहीं बाध्य कर सकते। अगर कोई ऐसा करता है तो इसकी शिकायत दें। कार्यवाई होगी।” वहीं नोएडा एक एक अभिवावक विवेक चौहान ने एक प्राईवेट स्कूल के खिलाफ डीएम से मेल द्वारा शिकायत करते हुए लिखा है कि स्कूल में कॉपी-किताब और यूनिफॉर्म की एक दुकान संचालित की जा रही है और स्कूल प्रबंधन द्वारा उसी दुकान से स्कूल-कॉपी यूनिफॉर्म इत्यादि खरीदने के लिए अभिवावकों को बाध्य किया जा रहा है। साथ ही बच्चों को दी जा रहीं किताबें स्कूल की अपने प्रकाशन की हैं जो कि बाहर खुले बाजार में कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं।
अब सवाल यह है कि सरकार और नेता कब तक इस अन्याय को अनदेखा करते रहेंगे? क्या वे केवल चुनावों के समय जनता के घरों तक पहुँचते हैं, और फिर कुर्सी मिलते ही जनता को उसके हाल पर छोड़ देते हैं?

Delhi News: जनता की आवाज़ दबेगी नहीं!
अब वक्त आ गया है कि इस मुद्दे को हर मंच पर उठाया जाए। अगर सरकारें नहीं जागतीं, तो जनता को अपनी ताकत दिखानी होगी। ये वही जनता है जिसने आपको कुर्सी पर बैठाया है और यही जनता आपको कुर्सी से गिराने की ताकत भी रखती है। शिक्षा के नाम पर हो रही इस लूट को रोकना ही होगा—वरना वो दिन दूर नहीं जब माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा के लिए गहने गिरवी रखने पर मजबूर होते रहेंगे और सरकारें मूकदर्शक बनी रहेंगी।
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