Vande matram: लोकसभा में सोमवार को वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर हुई विशेष चर्चा अचानक जश्न से ज्यादा राजनीतिक टकराव में बदल गई। सदन में प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के बड़े नेताओं तक, सभी ने इस गीत को लेकर अपनी-अपनी राजनीतिक व्याख्या रखी और माहौल गर्माता चला गया।
“150 साल से आत्मा में बसने वाले गीत पर आज बहस क्यों?” – प्रियंका गांधी
चर्चा के बीच कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी सबसे तीखी आवाज़ बनकर उभरीं। उन्होंने सदन से पूछा “वंदे मातरम् 150 साल से देश की आत्मा है। 75 सालों से लोगों के दिल में बसा है। तो फिर आज इस पर बहस क्यों?” इसके बाद प्रियंका गाँधी सवाल का उत्तर खुद ही दिया “क्योंकि बंगाल का चुनाव आ रहा है और मोदी जी उसमें अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं।” प्रियंका यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने प्रधानमंत्री पर सीधा प्रहार भी किया “मोदी जी अब वह पीएम नहीं रहे जो पहले थे। और नेहरू जी की बात करते हैं जितने साल मोदी प्रधानमंत्री रहे, उतने साल नेहरू जेल में रहे।”
Vande matram: पीएम मोदी ने लगाए कई आरोप
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चर्चा की शुरुआत की थी और कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा “कांग्रेस ने वंदे मातरम् के टुकड़े किए। नेहरू जिन्ना के सामने झुक गए थे। वंदे मातरम् आज़ादी के दौर से प्रेरणा का स्रोत रहा तो फिर इसके साथ पिछले दशक में अन्याय क्यों हुआ?” मोदी के इन आरोपों के बाद सदन में सत्ता-विपक्ष की तल्ख़ी और बढ़ गई।
Vande matram: भाजपा ने किया पलटवार
भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने भी इस बहस को तीखा मोड़ दिया। उन्होंने कहा “वंदे मातरम् राष्ट्रभक्तों के लिए एनर्जी है। कुछ लोगों को इससे एलर्जी है। अब जिन्ना के मुन्ना को भी वंदे मातरम् से दिक्कत है।” ठाकुर के इस बयान से सदन में शोर-शराबा तेज हो गया। अखिलेश यादव का तंज: “जिस गीत ने जोड़ा, वही आज बांटने की कोशिश”
अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए कहा
“जिस वंदे मातरम् ने आज़ादी के आंदोलन को जोड़ा, आज के दरारवादी लोग उसी से देश को तोड़ना चाहते हैं।” उन्होंने आगे कहा “वंदे मातरम् गाने के लिए नहीं, निभाने के लिए है।”
150 साल की यात्रा का जश्न मना रहा भारत
1875 में लिखा, 1882 में आनंदमठ में छपा
भारत का राष्ट्रगीत वंदे मातरम् बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के दिन लिखा। यह गीत पहली बार 1882 में उनकी पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित उपन्यास आनंदमठ का हिस्सा बनकर सामने आया। 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार मंच से वंदे मातरम् गाया। सभा में मौजूद हजारों लोग भावुक हो उठे, कई की आंखें नम थीं और यहीं से यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा बन गया।
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