रावण की पूरी कहानी: दशहरा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है। त्रेतायुग में इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी। रावण एक ओर महान विद्वान, शिवभक्त और बलशाली योद्धा था, तो वहीं दूसरी ओर अहंकारी और अधर्मी भी। इसी वजह से उसका अंत निश्चित हुआ। आइए जानते हैं रावण से जुड़ी पूरी कहानी—
रावण का जन्म और वंश
असुरों के गुरु शुक्राचार्य और राक्षस राजा सुमाली राक्षसों की शक्ति बढ़ाना चाहते थे।
सुमाली की पुत्री कैकसी का विवाह महातपस्वी ऋषि विश्वश्रवा से हुआ।
इस विवाह से चार संतानें हुईं—रावण, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण।
कैकसी अपने संतानों को राक्षसों के पास ले गई, जहाँ उन्हें दैत्यकुल की शिक्षा दी गई।
रावण का परिवार
पिता: ऋषि विश्वश्रवा (पुलस्त्य वंश से)
माता: कैकसी (दैत्य कुल से)
भाई/बहन: कुंभकर्ण, विभीषण, शूर्पणखा और सौतेले भाई कुबेर।
पत्नी: मंदोदरी (इसके अलावा और भी पत्नियाँ थीं)
पुत्र: मेघनाद (इंद्रजीत), अतिकाय और अक्षयकुमार प्रमुख।
रावण दशानन कैसे बना?
रावण को दशानन यानी दस सिरों वाला इसलिए कहा जाता है—
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उसने कठोर तपस्या की।
तपस्या के दौरान बार-बार अपना सिर काटकर शिवजी को अर्पित किया।
हर बार शिवजी की कृपा से उसका सिर पुनः जुड़ जाता।
यह प्रक्रिया उसने दस बार दोहराई।
अंततः शिवजी ने उसे दस सिरों वाला बनने का वरदान दिया।
रावण ब्राह्मण क्यों माना जाता है?
पिता विश्वश्रवा ब्राह्मण थे और माता कैकसी राक्षसी वंश से।
पिता से मिले संस्कारों और शिक्षा के कारण रावण वेदों का ज्ञाता, महान पंडित और शिवभक्त था।
लेकिन राक्षसी गुणों ने उसके चरित्र को अहंकारी और अधर्मी बना दिया।
रावण की शक्तियाँ और कमजोरियाँ
युद्धों में हार
रावण कई बार पराजित हुआ—
पाताल लोक के राजा बली से।
महिष्मति के राजा सहस्रबाहु अर्जुन और वानरराज बाली से।
भगवान शिव से भी।
फिर भी उसकी नीति थी कि हार के बाद दुश्मनों से मित्रता कर ली जाए।
विद्या और ज्ञान
पिता से वेद, शास्त्र और युद्धकला सीखी।
कठोर तपस्या से दिव्य अस्त्र-शस्त्र और धनुर्विद्या में निपुण हुआ।
तंत्र-मंत्र, संगीत और वास्तु विद्या का भी जानकार था।
रावण को सोने की लंका और पुष्पक विमान कैसे मिला?
सोने की लंका मूल रूप से उसके सौतेले भाई कुबेर की थी।
रावण ने बलपूर्वक लंका और पुष्पक विमान छीन लिया।
सीता हरण की कथा
शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए रावण ने सीता का हरण किया।
मारीच की मदद से वह साधु के वेश में पंचवटी पहुँचा और सीता का अपहरण कर लंका ले आया।
लेकिन नलकूबर के शाप के कारण उसने कभी सीता को बलपूर्वक नहीं छुआ और उन्हें अशोक वाटिका में ही रखा।
राम-रावण युद्ध
पूरा युद्ध 87 दिन तक चला।
अंतिम चरण में राम और रावण का सीधा युद्ध 7 दिन तक चला।
श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र से रावण का वध किया।
रामचरितमानस के अनुसार, राम ने 31 बाणों से उसके सिर, भुजाएँ और अंत में जीवन का अंत किया।
रावण-वध के बाद क्या हुआ?
विभीषण ने रावण का अंतिम संस्कार किया।
लंका का राजा विभीषण को बनाया गया।
पुष्पक विमान से श्रीराम अयोध्या लौटे और उनका राजतिलक हुआ।
इस प्रकार रामराज्य की स्थापना हुई।
रावण की सबसे बड़ी गलती
ब्रह्मा जी से वरदान लेते समय उसने देवता और असुरों का नाम लिया, परंतु मनुष्य और वानरों का नाम नहीं लिया।
यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी, जिसने उसके अंत का मार्ग खोला।
रावण एक विलक्षण विद्वान, बलशाली योद्धा और शिवभक्त था। लेकिन उसका अहंकार, अधर्म और स्त्रियों के प्रति अनादर ही उसके पतन का कारण बना। दशहरे पर रावण का पुतला दहन हमें यही संदेश देता है कि—कितना भी ज्ञान, बल या ऐश्वर्य क्यों न हो, यदि मनुष्य अधर्मी और अहंकारी है तो उसका अंत निश्चित है।