HINDU RASTRA : बागेश्वर धाम सरकार के प्रमुख पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की “सनातन हिंदू एकता पदयात्रा 2025” ने दिल्ली से लेकर वृंदावन तक एक अभूतपूर्व धार्मिक माहौल बना दिया है। 7 नवंबर को दिल्ली के छत्तरपुर मंदिर से शुरू हुई यह यात्रा 16 नवंबर को वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में समाप्त होगी। यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुकी है जिसका संदेश है, “हिंदू एकता और सनातन धर्म के प्रति जागरूकता।”
आस्था और ऊर्जा का अद्भुत संगम
HINDU RASTRA : जैसे-जैसे पदयात्रा दिल्ली से आगे बढ़ रही है, श्रद्धालुओं की भीड़ हर पड़ाव पर बढ़ती जा रही है। सड़कों पर ‘जय श्रीराम’ और ‘बागेश्वर धाम सरकार की जय’ के नारों से वातावरण गूंज रहा है। भजन, आरती और पुष्पवर्षा के बीच यह यात्रा किसी आध्यात्मिक उत्सव का दृश्य पेश कर रही है। यह यात्रा शास्त्री के नेतृत्व में धर्म, समाज और राष्ट्र चेतना को जोड़ने का प्रयास है। उनका कहना है “यह यात्रा किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि अपने धर्म को जानने और अपनाने की यात्रा है। जब हिंदू समाज एकजुट होगा, तभी भारत आत्मनिर्भर और सशक्त बनेगा।”

सेलिब्रिटी और संतों का समर्थन
HINDU RASTRA : धीरेन्द्र शास्त्री की लोकप्रियता अब केवल धार्मिक मंच तक सीमित नहीं रही। इस पदयात्रा में कई नामी हस्तियाँ भी उनके साथ चल रहीं हैं। भारतीय क्रिकेटर उमेश यादव ने कहा “हर व्यक्ति को अपने धर्म और ईश्वर के प्रति जागरूक होना चाहिए। यह यात्रा हिंदू समाज को जोड़ने का प्रयास है, इसलिए मैं इसका हिस्सा बना।” पूर्व क्रिकेटर शिखर धवन और रेसलर द ग्रेट खली ने भी भाग लिया। धवन ने कहा, “एकता में ही शक्ति है। अगर हिंदू समाज एक रहेगा, तो भारत भी मजबूत रहेगा।”
16 नवंबर को यात्रा के समापन पर संजय दत्त, राजपाल यादव, और संभवतः योगगुरु बाबा रामदेव भी वृंदावन में शास्त्री जी के साथ होंगे। वृंदावन के प्रसिद्ध संत आचार्य मृदुलकांत शास्त्री ने कहा “यह पदयात्रा वह अलख जगा रही है, जिसे बुझाना असंभव होगा।”

प्रशासन की सख्त तैयारियाँ
वृंदावन में इस विशाल यात्रा को देखते हुए प्रशासन ने विशेष व्यवस्था की है। 16 नवंबर को छटीकरा से बांके बिहारी मंदिर तक केवल 500 लोगों को प्रवेश की अनुमति दी गई है। रविवार को अपेक्षित भारी भीड़ को देखते हुए ट्रैफिक डायवर्जन और सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किए जाएंगे।
समाज के लिए संदेश: भक्ति के साथ जागरूकता
धीरेन्द्र शास्त्री की यह यात्रा एक धार्मिक आयोजन से कहीं आगे निकल चुकी है। यह हिंदू समाज के वैचारिक एकीकरण की दिशा में बढ़ा हुआ कदम है।
उनका स्पष्ट संदेश है “सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन जीने की नीति है। भक्ति तब सार्थक है जब वह समाज और राष्ट्र के हित में रूपांतरित हो।” पदयात्रा के दौरान वे लोगों से नशामुक्ति, गौ-सेवा, स्वदेशी उत्पादों का उपयोग और भारतीय संस्कृति के संरक्षण का आह्वान कर रहे हैं।
समाज को क्या लाभ और चुनौतियाँ?
लाभ:
1. धार्मिक एकता का वातावरण: इस यात्रा ने देशभर के हिंदुओं को एक मंच पर लाकर सांस्कृतिक एकजुटता की भावना को बल दिया है।
2. युवा पीढ़ी में जागरण: शास्त्री जी के संदेश ने युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास किया है यह आज के भटकाव भरे समय में एक सकारात्मक कदम है।
3. सांस्कृतिक गर्व का पुनर्जागरण: सनातन परंपरा को लेकर जो आत्मगौरव की भावना कम हो रही थी, वह इस पदयात्रा के माध्यम से दोबारा उभर रही है।
संभावित चुनौतियाँ:
1. धार्मिक ध्रुवीकरण का खतरा: यदि ऐसी यात्राएँ केवल एक धर्म के भीतर सिमट जाएँ, तो यह अन्य समुदायों के साथ संवाद को सीमित कर सकती हैं।
2. राजनीतिकरण की संभावना: धार्मिक आंदोलन अक्सर राजनीतिक विमर्श में घिर जाते हैं जिससे मूल आध्यात्मिक संदेश कमजोर पड़ सकता है।
3. भीड़ नियंत्रण और व्यवस्था का दबाव: विशाल जनसमर्थन के कारण सुरक्षा व यातायात व्यवस्थाओं पर अतिरिक्त भार आना स्वाभाविक है।
इन सबके बावजूद, समाजशास्त्रियों का मानना है कि यह यात्रा “भारत में धार्मिक पुनर्जागरण के नए अध्याय” की ओर संकेत करती है।
एकता की ओर बढ़ता भारत
HINDU RASTRA: धीरेन्द्र शास्त्री की “सनातन हिंदू एकता पदयात्रा” ने यह साबित किया है कि आज भी भारत की आत्मा आस्था और अध्यात्म में रची-बसी है। दिल्ली से वृंदावन तक उमड़ता जनसैलाब इस बात का प्रमाण है कि हिंदू समाज अब अपने धर्म, संस्कृति और अस्तित्व के प्रति जागरूक हो रहा है। यह यात्रा केवल भक्ति का मार्ग नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक संवाद, सामाजिक चेतना, और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन चुकी है। जैसे-जैसे यह पदयात्रा बांके बिहारी के चरणों की ओर बढ़ रही है, वैसे-वैसे एक नई अलख जल रही है “एक भारत, एक सनातन, एक आत्मा।”
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