MOHAN BHAGWAT NEWS: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आज वैश्विक परिदृश्य में संघर्ष सिर्फ शक्ति के विस्तार का नहीं, बल्कि ‘राष्ट्रहित’ बनाम ‘राष्ट्रवाद’ की जटिल बहस का परिणाम है। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि जब राष्ट्रवाद अपनी आक्रामक सीमा पार करता है, तो विश्व युद्ध जैसे विनाशकारी परिणाम सामने आते हैं।
प्रतिस्पर्धा का सीधा प्रभाव कमजोर देशों पर पड़
भागवत के अनुसार, युद्धों के बाद जब दुनिया ने अंतरराष्ट्रीयवाद की बात की तो उसका उद्देश्य वैश्विक सहयोग बनाना था, लेकिन वास्तविकता यह है कि अंतरराष्ट्रीयवाद की वकालत करने वाले भी अंततः अपने राष्ट्रीय हित को ही सर्वोपरि रखते हैं। इस दोहरे संकट के बीच, शक्तिशाली देशों की राजनीति और प्रतिस्पर्धा का सीधा प्रभाव कमजोर देशों पर पड़ रहा है।
MOHAN BHAGWAT NEWS: भारत का दृष्टिकोण, “वसुधैव कुटुंबकम”

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि वर्तमान वैश्विक चुनौतियाँ- चाहे आर्थिक अस्थिरता हो, युद्ध हो, ऊर्जा संकट या सामाजिक तनाव इन सबके समाधान को लेकर दुनिया आज भारत की ओर देख रही है। उनका कहना था कि भारत का दृष्टिकोण, “वसुधैव कुटुंबकम” और “सबका साथ–सबका विकास” पर आधारित है, जो प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहयोग का मार्ग दिखाता है।
दृष्टिकोण विकल्प नहीं, आवश्यकता बनेगा
भागवत ने कहा कि भारत की सभ्यता और दर्शन ऐसे समय में संतुलित और मानवीय रास्ता प्रस्तुत कर सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि विश्व शांति और स्थायित्व के लिए भारत का दृष्टिकोण केवल विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बनता जा रहा है।
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