SIR: बिहार में राज्य-स्तरीय पहचान पंजी (SIR) की सफलता के बाद अब इसे देश के अन्य राज्यों में भी लागू किया जा रहा है। इस प्रक्रिया के तहत अवैध वोटरों के नाम हटाए जा रहे हैं, जबकि वैध नागरिकों को सूची में जोड़ा जा रहा है। SIR लागू होने की ख़बर ने अवैध घुसपैठियों में डर पैदा कर दिया है। इसका सीधा असर पश्चिम बंगाल–बांग्लादेश सीमा पर दिखाई दे रहा है, जहां सोमवार सुबह से भारी भीड़ देखी गई।
बोरिया-बिस्तर समेटकर क्यों लौट रहे अवैध बांग्लादेशी
जानकारी के अनुसार बड़ी संख्या में बांग्लादेश के सतखीरा और खुलना जिलों के लोग झुग्गियों से अपना सामान समेटकर चेकपोस्ट पर पहुंच गए। इनमें से कई ने बताया कि वे वर्षों से भारत के अलग-अलग राज्यों में प्रवासी मजदूर जैसे रिक्शा चालक, निर्माण कर्मचारी या भट्ठे के मजदूर के रूप में काम कर रहे थे। अफवाह फैलने के बाद कि राज्य में नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, ये सभी बिना देरी किए अपने देश लौटने के लिए सीमा पर पहुंच गए।
SIR: BSF और पुलिस ने बढ़ाई निगरानी
स्थानीय पुलिस और BSF ने हालांकि यह स्पष्ट किया है कि सीमा पर किसी भी आधिकारिक SIR ड्राइव की शुरुआत नहीं हुई है। इसके बावजूद भीड़ नियंत्रण के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात कर दिए गए हैं। BSF बांग्लादेश लौटने वालों की पहचान की जांच कर उन्हें पार जाने दे रही है। इधर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार SIR जैसी प्रक्रियाओं का विरोध कर रही हैं। उनका आरोप है कि इससे वोटर लिस्ट में हस्तक्षेप किया जा सकता है और उन्होंने चुनाव आयोग को चेताया है कि किसी तरह की छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम होंगे।
डर की वजह से कई घुसपैठियों ने की आत्महत्या
पिछले कुछ दिनों में SIR के डर की वजह से कई चौंकाने वाली घटनाएँ सामने आई हैं। दशकों से बंगाल में बस चुके कुछ अवैध प्रवासियों को जब वापस भेजा जाने लगा तो कई लोगों ने सबकुछ छोड़ने के डर से आत्महत्या तक कर ली। कई परिवारों ने भारत में घर तक बना लिए थे, लेकिन प्रक्रिया शुरू होते ही वे अपने-अपने वतन लौटने को मजबूर हो गए।
SIR: सीमा सुरक्षा और अवैध प्रवास फिर बना बड़ा मुद्दा
घटना ने एक बार फिर पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठ और सीमा सुरक्षा के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। चेकपोस्ट पर लगी भारी भीड़ और तेजी से लौटते अवैध प्रवासियों की संख्या इस बात की ओर इशारा करती है कि SIR जैसी प्रक्रिया आगामी महीनों में कई राज्यों की राजनीतिक और सामाजिक तस्वीर बदल सकती है।
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