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Nobel Peace Prize 2025: वेनेज़ुएला की लोकतंत्र समर्थक नेता मारिया कोरिना मचाडो को मिला सम्मान, डोनाल्ड ट्रंप के दावे पर लगा विराम

Nobel Peace Prize 2025

Nobel Peace Prize 2025: इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर चल रही अटकलों पर अब विराम लग गया है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह पुरस्कार नहीं मिला है। नॉर्वे की नोबेल समिति ने 2025 का प्रतिष्ठित शांति पुरस्कार वेनेज़ुएला की लोकतांत्रिक आंदोलन की प्रमुख नेता मारिया कोरिना मचाडो को प्रदान किया है। उन्हें यह सम्मान वेनेज़ुएला के नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा और देश में तानाशाही के खिलाफ उनके निरंतर संघर्ष के लिए दिया गया है।

ट्रंप के दावे हुए खारिज

Nobel Peace Prize 2025: डोनाल्ड ट्रंप ने बीते दिनों दावा किया था कि उन्होंने दुनिया में आठ युद्धों को रुकवाने में भूमिका निभाई है, लेकिन उनके इन दावों पर अब सवाल खड़े हो गए हैं। खास तौर पर भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर और गाज़ा में इज़रायल-हमास संघर्ष को लेकर उन्होंने खुद को शांति दूत के रूप में पेश करने की कोशिश की थी। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि वह किसी भी बड़े शांति समझौते में निर्णायक भूमिका नहीं निभा पाए। नोबेल समिति ने अपना निर्णय गाज़ा संघर्ष से पहले ही ले लिया था।

ट्रंप के नोबेल से वंचित रहने के पांच कारण

1. नोबेल के मूल सिद्धांतों के विपरीत नीतियां: ओस्लो पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की निदेशक नीना ग्रेगर के मुताबिक, ट्रंप की नीतियां अंतरराष्ट्रीय सहयोग और हथियार नियंत्रण के नोबेल आदर्शों के खिलाफ हैं।

2. वैश्विक संगठनों से अलगाव: “अमेरिका फर्स्ट” नीति के चलते उन्होंने कई बहुपक्षीय संधियों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से अमेरिका को बाहर कर दिया।

3. व्यापारिक टकराव और धमकियां: ट्रंप ने चीन, यूरोपीय देशों और यहां तक कि सहयोगी राष्ट्रों पर भी व्यापारिक युद्ध छेड़े और विवादित बयान दिए।

4. आंतरिक सैन्य हस्तक्षेप: घरेलू विरोध प्रदर्शनों के दौरान उन्होंने सेना के प्रयोग की धमकी दी, जिससे देश के भीतर शांति पर असर पड़ा।

5. कूटनीतिक अस्थिरता: ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अस्थिरता और अविश्वास की स्थिति बनी रही।

 

मारिया कोरिना मचाडो: लोकतंत्र की आवाज़

Nobel Peace Prize 2025: नोबेल समिति ने कहा कि मारिया कोरिना मचाडो ने वेनेज़ुएला में लोकतंत्र की मशाल जलाए रखी, जब वहां राजनीतिक दमन और आर्थिक संकट चरम पर था। उन्होंने विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर “स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव” की मांग को राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया। समिति ने उन्हें “लैटिन अमेरिका में साहस और लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रतीक” बताया है। वर्तमान में वेनेज़ुएला गंभीर मानवीय संकट से गुजर रहा है। तानाशाही शासन के कारण लाखों लोग पलायन कर चुके हैं, जबकि जो बचे हैं, वे आर्थिक तंगी और राजनीतिक दमन झेल रहे हैं। मचाडो ने इन कठिन परिस्थितियों में भी शांति और लोकतंत्र की राह नहीं छोड़ी और इसी जज़्बे ने उन्हें 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार दिलाया।

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