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UGRATARA MANDIR: मंदिर जहां प्रतिमा नहीं, पानी से भरे मटके की होती है पूजा, जानिए

UGRATARA MANDIR:

UGRATARA MANDIR: हिंदू धर्म में भगवान शिव और मां पार्वती को दांपत्य जीवन, संतान प्राप्ति और सुख-शांति के लिए सर्वश्रेष्ठ देवता माना जाता है। इनकी पूजा से घर-परिवार में सुख, समृद्धि और सौहार्द बना रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां सती के अग्नि में भस्म होने के बाद उनके शरीर के विभिन्न अंग पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में गिरे, जहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। इन्हीं पवित्र स्थानों में से एक है असम के गुवाहाटी में स्थित श्री-श्री उग्रतारा मंदिर, जो अपनी अनोखी परंपरा और अद्भुत मान्यता के कारण देश-विदेश के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

मटके की पूजा अनोखी परंपरा

UGRATARA MANDIR: उग्रतारा मंदिर उजान बाजार के पास गुवाहाटी के पूर्वी भाग में स्थित है। मान्यता है कि माता सती की नाभि इसी स्थान पर गिरी थी, जिसके कारण यह स्थान अत्यंत शक्तिपूर्ण माना जाता है। इस मंदिर को विशेष बनाता है यहां पूजा की अनोखी परंपरा, यहां किसी प्रतिमा की नहीं, बल्कि पानी से भरे मटके की पूजा होती है। भक्त मानते हैं कि इस पानी से भरे मटके में माता का दिव्य स्वरूप विराजमान है। यही वजह है कि मटका बदलने की प्रक्रिया, जल चढ़ाना और उसकी शुद्धता बनाए रखना अत्यंत श्रद्धा और सावधानी के साथ किया जाता है।

भगवान शिव की उपस्थिति…

UGRATARA MANDIR: मंदिर परिसर के पीछे की ओर भगवान शिव का मंदिर स्थित है। लोकमान्यता है कि यदि उग्रतारा माता के दर्शन किए जाएं, तो भगवान शिव के दर्शन करना भी अनिवार्य होता है। माता की सुरक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव यहां विराजमान बताए जाते हैं। इसलिए किसी भी भक्त के लिए दोनों मंदिरों में दर्शन करना पूजा का सम्पूर्ण रूप माना जाता है।

तांत्रिक परंपरा और बौद्ध धर्म से संबंध

UGRATARA MANDIR: उग्रतारा मंदिर की विशेषता केवल शक्तिपीठ होने तक सीमित नहीं है। किंवदंतियों के अनुसार, बौद्ध धर्म में ‘एका जटा’ और ‘तीक्ष्ण-कांता’ नामक देवियों की पूजा की जाती थी, जिन्हें तंत्र की देवियां माना जाता है और ये मां उग्रतारा का ही रूप हैं। इस कारण यहां तांत्रिक साधना भी की जाती है। अनेक तांत्रिक साधक विशेष दिनों पर यहां साधना करने आते हैं और अपनी सिद्धियों की प्राप्ति का दावा भी करते हैं। नवरात्र के समय यह मंदिर विशेष रूप से तांत्रिक परंपराओं का केंद्र बन जाता है। कुछ समुदायों में पशुबलि की परंपरा अब भी प्रचलित है, जो तांत्रिक महत्व से जुड़ी मानी जाती है।

भूकंप में क्षति और पुनर्निर्माण

श्री-श्री उग्रतारा मंदिर का निर्माण अहोम साम्राज्य के राजा शिव सिंह ने वर्ष 1725 में करवाया था। राजा शिव सिंह द्वारा इस काल में कई मंदिर बनाए गए थे, लेकिन भूकंप के बाद मंदिर को भारी क्षति पहुंची। बाद में स्थानीय श्रद्धालुओं और शासकों के प्रयास से इसका पुनर्निर्माण किया गया। आज यह मंदिर असम की आस्था, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत का एक अद्वितीय प्रतीक माना जाता है।

प्रतिदिन पहुंचते हैं सैकड़ों श्रद्धालु
UGRATARA MANDIR: यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि असम की सांस्कृतिक पहचान का भी महत्वपूर्ण स्तंभ है। यहां प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं और शांत वातावरण में मां उग्रतारा से मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। मंदिर परिसर में होने वाले दैनिक अनुष्ठान, घंटियों की मधुर ध्वनि और दिव्य वातावरण श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, उग्रतारा मंदिर में केवल पूजा ही नहीं, बल्कि मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक अनुभव भी मिलता है, जिससे यह शक्तिपीठ देशभर के भक्तों के लिए खास महत्व रखता है।

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