Bihar Election 2025: बिहार की सियासत इस वक्त अपने पूरे उफान पर है। विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच सभी राजनीतिक दल जनता के बीच अपनी पैठ मजबूत करने में जुटे हैं। ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुजफ्फरपुर यात्रा ने राजनीतिक हलचल को एक नया मोड़ दे दिया है। शुक्रवार को जब उनका हेलिकॉप्टर मुजफ्फरपुर में उतरा, तो हज़ारों समर्थकों की भीड़ ‘मोदी, मोदी’ के नारों से गूंज उठी। हालांकि इस बार चर्चा उनके भाषण या रैली की नहीं, बल्कि उस ‘गमछे’ की है, जिसे पीएम मोदी ने मुस्कुराते हुए भीड़ की ओर लहराया। दोपहर की तेज धूप के बावजूद उनका यह सहज इशारा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी क्या यह सिर्फ परंपरा का सम्मान था या एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति?
मधुबनी प्रिंट का गमछा
Bihar Election 2025: प्रधानमंत्री द्वारा पहना गया मधुबनी प्रिंट वाला गमछा अचानक चर्चा का केंद्र बन गया है। मंच से अभिवादन करते हुए जब मोदी ने उसे हवा में लहराया, तो भीड़ का उत्साह चरम पर पहुंच गया। मधुबनी कला बिहार की पहचान मानी जाती है यह केवल एक वस्त्र नहीं, बल्कि राज्य की संस्कृति, मेहनत और लोककला का प्रतीक है। पीएम मोदी का इसे पहनना और सार्वजनिक मंच पर प्रदर्शित करना इस बात का संकेत है कि वे बिहार की मिट्टी और उसके लोगों की भावनाओं से गहरा जुड़ाव दिखाना चाहते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में गमछा आम जनता की पहचान है खेतों में मेहनत करने वाले किसान, रिक्शा चलाने वाले मज़दूर या रोज़गार की तलाश में भटकते प्रवासी सबके जीवन में यह कपड़ा रोज़मर्रा का साथी है। इसलिए जब प्रधानमंत्री गमछा लहराते हैं, तो यह केवल एक परिधान नहीं, बल्कि उस वर्ग से एक ‘भावनात्मक संवाद’ का संकेत बन जाता है, जो देश की असली रीढ़ है।
मुजफ्फरपुर ने दिखा दिया… जब जनता का अपने प्रधान सेवक से रिश्ता स्नेह से भरा हो, तो रैली, उत्सव बन जाता है!❤️
धन्यवाद मुजफ्फरपुर, आपके इस प्यार के लिए 🙏 pic.twitter.com/RqbULrmaMy
— BJP (@BJP4India) October 31, 2025
‘गमछे की राजनीति’: बिना बोले जुड़ाव का संदेश
Bihar Election 2025: प्रधानमंत्री मोदी कई बार स्थानीय परिधानों को अपनाकर क्षेत्रीय संस्कृति का सम्मान कर चुके हैं चाहे स्वतंत्रता दिवस पर उनकी पगड़ी हो या किसी राज्य की पारंपरिक चादर। बिहार में गमछा लहराना उसी परंपरा का हिस्सा है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि इस प्रतीकात्मक कदम के ज़रिए वे बिना शब्दों के यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी सरकार किसानों, मजदूरों और आम जनता के साथ खड़ी है।
बिहार के सामाजिक समीकरणों में गमछे की भूमिका
Bihar Election 2025: आर्थिक आंकड़ों के मुताबिक, बिहार की आधी से ज़्यादा आबादी आज भी खेती और श्रम आधारित कार्यों पर निर्भर है। यही वर्ग चुनावी परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाता है। ऐसे में प्रधानमंत्री का यह सांस्कृतिक प्रतीकवाद सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कदम भी माना जा रहा है। गमछा यहां मेहनत, आत्मसम्मान और स्थानीय पहचान तीनों का प्रतिनिधित्व करता है।
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