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New reproductive technology: महिलाओं की भागीदारी के बिना भी जन्म संभव — विज्ञान की नई क्रांति

New reproductive technology

New reproductive technology: एक हालिया वैज्ञानिक प्रयोग ने दुनिया भर में बहस छेड़ दी है। वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि भविष्य में महिला की भागीदारी के बिना भी पुरुषों की कोशिकाओं से बच्चे पैदा करना संभव हो सकता है। यह दावा जितना रोचक है, उतना ही विवादास्पद भी।

शोध में क्या दावा किया गया है?

New reproductive technology: अमेरिका के शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में एक नई तकनीक पर काम किया है जिसमें महिला के अंडाणु से नाभिक हटाकर पुरुष की त्वचा या शरीर की किसी कोशिका का नाभिक डाला जाता है।
इसके बाद उस कृत्रिम अंडे को शुक्राणु से निषेचित कर भ्रूण तैयार करने की प्रक्रिया की जाती है। वैज्ञानिक इसे माइटोमियोसिस प्रक्रिया बता रहे हैं, जिसके तहत अब तक 82 कृत्रिम अंडे बनाए जा चुके हैं।

अभी परीक्षण के चरण में है प्रयोग

New reproductive technology: रिपोर्टों के अनुसार, यह तकनीक अभी शुरुआती परीक्षणों में है। बनाए गए अंडों पर लगातार परीक्षण चल रहे हैं और अब तक यह केवल प्रयोगशाला तक सीमित है।
शोधकर्ता मानते हैं कि यह प्रक्रिया सफल हुई तो सेम-सेक्स कपल्स (एक ही लिंग के जोड़े) भी भविष्य में अपने जैविक बच्चे पैदा कर सकेंगे।

New reproductive technology
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कौन लोग इससे लाभ उठा सकते हैं?

New reproductive technology: अगर यह तकनीक सुरक्षित और प्रभावी साबित होती है, तो इससे उन पुरुषों को फायदा हो सकता है जिनके पास जैविक रूप से महिला पार्टनर नहीं है, या उन महिलाओं को जिनके अंडाणु विकसित नहीं हो पाते।
इस प्रक्रिया से पैदा होने वाले बच्चों में दोनों पुरुषों का डीएनए शामिल रहेगा, जिससे यह एक अनोखा जैविक प्रयोग माना जा रहा है।

नैतिक और कानूनी सवाल अभी बाकी हैं

New reproductive technology: भले ही यह खोज वैज्ञानिक दृष्टि से रोमांचक है, लेकिन इससे कई नैतिक और कानूनी प्रश्न भी जुड़ते हैं — जैसे बच्चे की पहचान, आनुवंशिक विविधता, माता-पिता के अधिकार और मानव प्रयोग की सीमाएँ।
अभी तक किसी भी देश ने इस तरह की तकनीक को मानव उपयोग के लिए मंजूरी नहीं दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसे अपनाने से पहले लम्बे समय तक वैज्ञानिक और नैतिक परीक्षण जरूरी हैं।

उम्मीद के साथ सावधानी भी ज़रूरी

New reproductive technology: इस खोज ने विज्ञान की सीमाओं को जरूर चुनौती दी है, लेकिन इसे अभी भविष्य की संभावना ही माना जाना चाहिए।
जब तक इसके परिणाम सुरक्षित, प्रमाणित और वैधानिक रूप से स्वीकृत नहीं हो जाते, तब तक इसे केवल एक प्रयोगशाला-स्तर का शोध समझना ही बुद्धिमानी होगी।

 

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